Sunday, August 22, 2010

ओह मेरी जाने जांतू ही बता तुज़े मे रखूं कहाँ
मेरे दिलो दिमाग मे घरोंदे लगे हें बनने
कोई हिन्दू का कोई सिख का कोई मुसलमान का
जबसे लगें हें बनने घरोंदे
दिलो दिमाग के मंदिर लगें हें बनने खंडहर
अब तो इसी आग मे जलता हूँ
आब तो चाहता हूँ
यह दिलो दिमाग न हो
या तेरा प्यार न हो
रघबीर खन्ना